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हे भारत के राम जगो - आशुतोष राणा | He Bharat Ke Raam Jago - Aashutosh Rana

हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूँ, सौ धर्मों का धर्म एक, बलिदान बताने आया हूँ । सुनो हिमालय कैद हुआ है, दुश्मन की जंजीरों में आज ...

आदमी नामा - नज़ीर अकबराबादी | Aadmi Naama - Nazeer Akbarabadi

दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी और मुफ़्लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी, ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी निअमत जो खा रहा है सो है वो भी...

नए इलाके में - अरुण कमल | Naye Ilake Mein - Arun Kamal

इन नए बसते इलाकों में जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ धोखा दे जाते हैं पुराने निशान खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड...

अग्नि पथ - हरिवंशराय बच्चन | Agni Path - Harivanshray Bachchan

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! वृक्ष हों भले खड़े, हों घने, हों बड़े, एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत! अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ...

गीत अगीत - रामधारी सिंह दिनकर | Geet Ageet - Ramdhari Singh Dinkar

गीत, अगीत, कौन सुंदर है? गाकर गीत विरह के तटिनी  वेगवती  बहती  जाती है, दिल हलका कर लेने को उपलों से कुछ कहती जाती है। तट पर एक गुलाब सोचता,...

वह हृदय नहीं है पत्थर है (स्वदेश) - गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' | Wo Hriday Nhi Hai Patthar Hai - Gaya Prasad Shukla 'Sanehi'

वह हृदय नहीं है पत्थर है,  जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥  जो जीवित जोश जगा न सका,  उस जीवन में कुछ सार नहीं।  जो चल न सका संसार-संग,  उसका हो...

कोई दीवाना कहता है - कुमार विश्वास | Koi Deewana Kehta Hai - Kumar Viswas

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है । मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है ।। मैं  तुझसे  दूर  कैसा  हूँ ,  तू  मुझसे  दूर कैसी  है । ये...

आसमान में उड़ते पक्षी - बालकृष्ण राव | Aasmaan Mein Udate Pakshi - Baalkrishn Raav

छोटा था, पर सुखकर था वह, तरुवर का मेरा आवास। उसमें ही मिलता था मुझको, जग के सभी सुखों का भास।। सदा प्रसन्नचित रहता था, होता कभी न दुखी, उदास...

हिंदुस्तान हमारा है - बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' | Hindustan Hamara Hai - BaalKrishna Sharma 'Naveen'

कोटि-कोटि कंठों से निकली, आज यहीं स्वर धारा है, भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है। जिस दिन सबसे पहले जागे, नव सिरजन के स्वप्न घने, ...

पलक पाँवड़े - अयोध्या सिंह उपाध्याय | Palak Paanvare - Ayodhya Singh Upadhyaya

आज क्‍यों भोर है बहुत भाता । क्‍यों खिली आसमान की लाली ॥ किसलिए है निकल रहा सूरज । साथ रोली भरी लिए थाली ॥। इस तरह क्‍यों चहक उठीं चिड़ियाँ ...