आसमान में उड़ते पक्षी - बालकृष्ण राव | Aasmaan Mein Udate Pakshi - Baalkrishn Raav

Aasman me udate pakshi - baalkrishna raav

छोटा था, पर सुखकर था वह,
तरुवर का मेरा आवास।
उसमें ही मिलता था मुझको,
जग के सभी सुखों का भास।।

सदा प्रसन्नचित रहता था,
होता कभी न दुखी, उदास।
चिंताहीन रहा करता था,
अपने सुहृदय जनों के पास।।

अरुणोदय होते हीं उठकर,
रवि का करता था स्वागत।
उसे जगाता जो सोया हो,
तरु के नीचे अभ्यागत।।

चारे की चिंता में उड़ता,
जब होता था सूर्योदय।
करके याद गगन विचरण की,
होता है संतृप्त हृदय।

दिनभर नभ में, थल पर, जल पर,
विचरण करता सहित प्रमोद।
हृदय नाच उठता नभ में,
आते थे जब प्रथम पयोद।।

कैसा सुखमय यह जीवन था,
जब मैं रहता था स्वाधीन।
नहीं जानता था होते हैं,
कैसे जग में जीव मलीन?

हुआ हाय! पिंजरे में पड़कर,
कैसा भीषण परिवर्तन।
हा दुदेव! लुटा दुखिया का,
स्वतंत्रता—सा प्राणधन।।

सोने के पिंजरे में भी यदि,
करना पड़े स्वर्ग में वास।
नरक तुल्य मुझको यह होगा,
बनकर के औरों का दास।।

कवि का नाम –
बालकृष्ण राव
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