भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।
जिस दिन सबसे पहले जागे, नव सिरजन के स्वप्न घने,
जिस दिन देश - काल के दो - दो, विस्तृत विमल वितान तने,
जिस दिन नभ में तारे छिटके, जिस दिन सूरज - चांद बने,
तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है।
यहाँ प्रथम मानव ने खोले, निंदियारे लोचन अपने,
इसी नभ तले उसने देखे, शत - शत नवल सृजन सपने,
यहाँ उठे स्वाहा के स्वर और, यहाँ स्वधा के मंत्र बने,
ऐसा प्यारा देश पुरातन, ज्ञान निधान हमारा है।
सतलुज, व्यास, चिनाब, वितस्ता, रावी, सिंधु - तरंगवती,
यह गंगा माता, यह यमुना, गहर - लहर रस - रंगवती,
ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी, वत्सला - उत्संग - मती,
इनसे प्लावित देश हमारा, यह रसखान हमारा है।
विंध्य - सतपुड़ा, नागा - खसिया, ये दो औघट घाट - महा,
भारत के पूरब - पश्चिम के, ये दो भीम कपाट महा,
तुंग - शिखर, चिर - अटल हिमालय है पर्वत सम्राट यहाँ,
यह गिरिवर बन गया युगों से, विजय निशान हमारा है।
क्या गणना है कितनी लंबी, हम सबकी इतिहास - लड़ी,
हमें गर्व है कि बहुत ही, गहरे हमारे नीव पड़ी,
हमने बहुत बार सिरजी हैं, कई क्रांतियां बड़ी - बड़ी,
इतिहासों ने किया सदा ही, अतिशय मान हमारा है।
कवि का नाम -
बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
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