वह हृदय नहीं है पत्थर है (स्वदेश) - गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' | Wo Hriday Nhi Hai Patthar Hai - Gaya Prasad Shukla 'Sanehi'

वह हृदय नहीं है पत्थर है, 
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥ 

जो जीवित जोश जगा न सका, 
उस जीवन में कुछ सार नहीं। 
जो चल न सका संसार-संग, 
उसका होता संसार नहीं॥ 

जिसने साहस को छोड़ दिया, 
वह पहुँच सकेगा पार नहीं। 
जिससे न जाति-उद्धार हुआ, 
होगा उसका उद्धार नहीं॥ 

जो भरा नहीं है भावों से, 
बहती जिसमें रस-धार नहीं। 
वह हृदय नहीं है पत्थर है, 
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥ 

जिसकी मिट्टी में उगे बढ़े, 
पाया जिसमें दाना-पानी। 
है माता-पिता बंधु जिसमें, 
हम हैं जिसके राजा-रानी॥ 

जिसने कि खजाने खोले हैं, 
नवरत्न दिये हैं लासानी। 
जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं, 
जिस पर है दुनिया दीवानी॥ 
उस पर है नहीं पसीजा जो, 
क्या है वह भू का भार नहीं। 
वह हृदय नहीं है पत्थर है, 
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥ 

निश्चित है निस्संशय निश्चित, 
है जान एक दिन जाने को। 
है काल-दीप जलता हरदम, 
जल जाना है परवानों को॥ 

है लज्जा की यह बात शत्रु-
आये आँखें दिखलाने को। 
धिक्कार मर्दुमी को ऐसी, 
लानत मर्दाने बाने को॥ 

सब कुछ है अपने हाथों में, 
क्या तोप नहीं तलवार नहीं। 
वह हृदय नहीं है पत्थर है, 
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥ 

कवि का नाम -
गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
Wo hriday nhi hai patthar hai
Gyaprasaad shukl


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