दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़्लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी,
ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
निअमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी
मसज़िद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ
पढ़तें हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
यां आदमी पै जान को वारे है आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी
अशरफ और कमीने से ले शाह ता वज्ञीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपजीर
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज्ञीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी
कवि का नाम -
नज़ीर अकबराबादी
शब्दार्थ -मुफलिस - गरीबगदा - भिखारी, फकीरज़रदार - मालदारबेनवा - कमजोरनिअमत - स्वादिष्ट भोजनखुतबाख्वाँ - कुरान का अर्थ बताने वालामुरीद - भक्त, शिष्यअशराफ - शरीफ़ का बहुवचनदिलपजीर - दिल को लुभाने वाला
Nazir Akbarabadi |
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