लौट चलें प्रकृति की ओर - व्यग्र पाण्डे | Laut Chalen Prakrti Ki Or - Vyagra Pandey

लौट चलें प्रकृति की ओर हिंदी कविता


लौट चलें फिर से हम 
माँ प्रकृति की ओर ।
पेड़ों की पंचायत जहाँ 
नाँच रहे हों मोर ।।

नदी-पहाड़ जंगल की शोभा  
झरनों का हो शोर ।
जहाँ साँझ मंदिर की झालर
गाय रम्भाएं भोर ।।

दूर-दूर खेतों की पंगत 
छिटके-छिटके गाँव ।
रोज प्रथम मिलन पर
सब कहते राम राम ।।

शुद्धता की पर्याय मृदा
पानी हवा के संग ।
जहाँ पक्षियों की चहचहाट 
भरती कितने रंग ।।

अब भी समय है तज दो
इन शहरों के अनुबंध ।
बुला रही है सौंधी माटी  
महसूस करो वो गंध।।

कवि का नम -
व्यग्र पाण्डे
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