वरदान - रवीन्द्रनाथ टैगोर | Vardaan - Rabindranath Tagore


'प्रभो! विपतितयों से रक्षा करो'
यह प्रार्थना लेकर मैं तेरे द्वार पर नहीं आया;
'विपतितयों से भयभीत न होऊँ'--
यही वरदान दे!
अपने दुख से व्यथित चित्त को
सांत्वना देने की भिक्षा नहीं माँगता;
'दुखों पर विजय पाऊँ'--
यही आशीर्वाद दे--यही प्रार्थना है!
तेरी सहायता तुझे न मिल सके तो भी
यह वर दे कि
'मैं दीनता स्वीकार करके अवश न बनूँ!'
संसार के अनिष्ट, अनर्थ और छल-कपट
ही मेरे भाग्य में आए हैं;
तो भी मेरा अंतर इन प्रतारणाओं के
प्रभाव से क्षीण न हुआ;
'मुझे बचा ले' यह प्रार्थना लेकर
मैं तेरे दर पर नहीं आया;
केवल संकट-सागर में तैरने रहने
की शक्ति माँगता हूँ!
'मेरा भार हलका कर दे', यह याचना पूर्ण होने की
सांत्वना नहीं चाहता;
'यह भार वहन करके चलता रहूँ'--यही प्रार्थना है!
सुख-भरे क्षणों में नतमस्तक हो तेरे दर्शन कर सकूँ।
किन्तु दुख भरी रातों में
'जब सारी दुनिया मेरा उपहास करेगी'
तब मैं शंकित न होऊँ--
यही वरदान चाहता हूँ।

कवि का नाम - 
रवीन्द्रनाथ टैगोर
Vardan kavita - Ravindranath tagore
रविन्द्र नाथ टैगोर

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10 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वरदान शीर्षक कविता का भावार्थ

Unknown ने कहा…

इस कविता क सरंश

Unknown ने कहा…

Wardan sirsak kawita ka bhawarth

Unknown ने कहा…

Vardan kavita ka bhavarth

Unknown ने कहा…

Is Kavita Ka Tajpur chuachut hai

Unknown ने कहा…

Vardan Kavita ka bhavarth

Unknown ने कहा…

Vardhan kavita ka bhavarth

Unknown ने कहा…

Vardan kavita ka jivan darshan

बेनामी ने कहा…

तेरी सहायता मुझे न मिल सके तो भी यह वर दे कि मैं दिनता स्वीकार करके अवश न बनूं

बेनामी ने कहा…

kavi kissey kiski bhiksha maang raha hai

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