जौहर - प्रयाण गीत - श्याम नारायण पाण्डेय | Jauhar - Prayan Geet - Shyam Narayan Pandey

अन्धकार दूर था, झाँक रहा सूर था ।
कमल डोलने लगे, कोप खोलने लगे ।।

लाल गगन हो गया, मुर्ग मगन हो गया ।
रात की सभा उठी, मुस्करा प्रभा उठी ।।

घूम घूम कर मधुप, फूल चूमकर मधुप ।
गा रहे विहान थे, गूँज रहे गान थे ।।

रात – तिमिर लापता, चाँद का न था पता ।
तुहिन – बिंदु गत कहीं, छिप गये नखत कहीं ।।

पवन मंद बह चला, मधु मरन्द बह चला ।
अधखिले खिले कुसुम, डाल पर हिले कुसुम ।।

विविध रंग – ढंग के, विविध रूप – रंग के ।
बोलते विहंग थे; बाल – विहग संग थे ।।

भानु – कर उदित हुए, कंज खिल मुदित हुए ।
न्याय भी उचित हुए, कुमुद संकुचित हुए ।।

जान गमन रात का, जान समय प्रात का। 
वीर सब उछल पड़े; महल से निकल पड़े ।।

दिवस के विकास में, किरण के प्रकाश में ।
गोलियाँ दमक उठीं; बर्छियां चमक उठीं ।।

सात सौ सवारियाँ, तीव्रतर कटारियाँ । 
तेग तबर आरियाँ, चल पड़ी दुधारियाँ ।।

जयति-जय-निनाद से, जयति-जयति-नाद से ।  
गूँजने नगर लगा; एक एक घर लगा ।।

जय उमे, गणेश जय, रूद्र हर महेश जय ।
जय निशुम्भमर्दनी, जय महिषविमार्दनी ।।

दुर्ग का महारथी, समर – शूर सारथी । 
बोल उठा ताव से, राजसी प्रभाव से ।। 

तुम अजर, बढ़े चलो, तुम अमर, बढ़े चलो ।
तुम निडर बढ़े चलो, आन पर चढ़े चलो ।।

शेषनाग हो अड़ा, क्यों न काल हो खड़ा ।
पद रहे तुषार हों, झड़ रहे अँगार हों ।।

पर न तुम रुको कभी, पर न तुम झुको कभी ।
नाग पर चले चलो, आग पर चले चलो ।।

एक गति बनी रहे, एक मति बनी रहे ।
जोश भी न कम रहे, बाढ़ पर कदम रहे ।।

कौन कह रहा निबल, कौन कह रहा कि टल ।
झाड़ दो उसे अभी, गाड़ दो उसे अभी ।।

प्रश्न है जटिल महा, शत्रु है कुटिल महा ।
आन –बान पर चलो, खेल जान पर चलो ।।

मौन वीर हो गये, मौन धीर हो गये ।
पर समीर हो गये, तुरत तीर हो गये ।।

नोट - लिखी हुुई कवि जौहर नामक महाकाव्य से
ली गई है।
कवि - 
श्याम नारायण पाण्डेय
Shayam Narayan Pandey ki kavita
श्याम नारायण पांडेय

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14 टिप्‍पणियां:

usha ने कहा…

आपका हार्दिक आभार। बचपन की इस ‌‌‌‌‌‌कविता को कब से तलाश कर रही थी ।क्या ये पूरी मिल पाएगी

सब कुछ यहाँ ने कहा…

जी, हम प्रयत्न करेंगे

vikram ने कहा…

Main bhi is kavita ko talaash raha tha.

Dev prataap Singh ने कहा…

Main ese piri padhana chahata hu

Unknown ने कहा…

2002 से

Unknown ने कहा…

जब क्लास में मास्टर जी पढाते थे तब इतनी अच्छी नहीं लगी थी याद नहीं होती थी ना 😄आज पढ कर बचपन लोट आया।
धन्यवाद।

Unknown ने कहा…

आज tv पर एक दृश्य देखकर बचपन की यह कविता याद आ गयी और खोजनेपर पूरी कविता यहां मिली।पढ़कर बचपन की याद ताजा हो गयी।ये कविता यहां उपलब्ध करनेवालों को दिल की गहराइयों से बहुत बहुत आभार.....

Unknown ने कहा…

Main bahut dino se is kavita ki talash kar raha tha YouTube oar bhi nahi mili
Man mein vikshob tha ki main ab ise kabhi nahi padh paunga
Wah adbhut dhanyawaad

Unknown ने कहा…

मखमली ओहार थे------ये पंक्तियों ; नहीं दिखीं ।कृपया उसे

Unknown ने कहा…

mujhe to puri yaad thi par ab bhul gai

Unknown ने कहा…

सबसे कीमती बचपन लौटा देती है कविताएं

Unknown ने कहा…

Jai asur vidarini Jai trishul dharini devi path prsast ker stru byuh trast Ma na tnik det aj tu Aher ker graj mar gher ker ----Ye line ise me se hta Di gyi hai

Unknown ने कहा…

Jai asur vidarini Jai trishul dharini devi path prsast ker stru byuh trast Ma na tnik der ker aj tu Aher ker graj mar gher ker ----Ye line ise me se hta Di gyi hai

Unknown ने कहा…

Bahut sundar kavita hai...bachpan ki yaad taaza ho gayi..dhanyawaad.🙏

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