फूल और काँटे - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Phool Aur Kante - Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'

Phool Aur Kante Kavita - Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'
फूल और काँटे कविता

हैं जनम लेते जगत में एक ही‚
एक ही पौधा उन्हें है पालता।
रात में उन पर चमकता चांद भी‚
एक ही–सी चांदनी है डालता।
मेह उन पर है बरसता एक–सा‚
एक–सी उन पर हवाएं हैं वहीं।
पर सदा ही यह दिखाता है समय‚
ढंग उनके एक–से होते नहीं।
छेद कर कांटा किसी की उंगलियां‚
फाड़ देता है किसी का वर वसन।
और प्यारी तितलियों का पर कतर‚
भौंर का है वेध देता श्याम तन।
फूल लेकर तितलियों को गोद में‚
भौंर को अपना अनूठा रस पिला।
निज सुगंधी औ’ निराले रंग से‚
है सदा देता कली दिल की खिला।
खटकता है एक सबकी आंख में‚
दूसरा है सोहता सुर सीस पर।
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे‚
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।
कवि का नाम - 
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध
Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

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