मैं सबसे छोटी होऊँ,
तेरी गोदी में सोऊँ,
तेरी अंचल पकड़-पकड़कर
फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ,
कभी न छोडूँ तेरा हाथ!
बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात!
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात!
अपने कर से खिला, धुला मुख,
धूल पोंछ, सज्जित कर गात,
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात!
ऐसी बड़ी न होऊँ मैं,
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,
कहूँ- दिखा दे चन्द्रोदय!
कवि का नाम -
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपना संदेश यहां भेजें