एक बूँद - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ek Boond - Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'

Ek Boond Kavita - Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी
सोचने फिर फिर यही मन में लगी
आह क्यों घर छोड़ कर मैं यों बढ़ी।
दैव मेरे भाग्य में है क्या बदा
मैं बचूंगी या मिलूंगी धूल में
या जलूंगी गिर अंगारे पर किसी
चू पड़ूंगी या कमल के फूल में।
बह गई उस काल कुछ ऐसी हवा
वह समुंदर ओर आई अनमनी
एक सुंदर सीप का मुंह था खुला
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।
लोग यों ही हैं झिझकते सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूंद लौं कुछ ओर ही देता है कर।

कवि का नाम - 
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'
अयोध्या सिंह उपाध्याय

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3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

ये बहुत मर्मस्पर्शी है

Rahul Sharma ने कहा…

Bahut hi preranadayak.

बेनामी ने कहा…

I like this poem also more poem by ayodhya singh upadhyaya.
Thanks...............

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