हिमालय के प्रति |
है मेरा बारम्बार नमन !
सबसे पहले जिसके माथे पर-
सूरज तिलक लगाता है,
जिसके यश को सागर अपनी
अनगिनत लहरों से गाता है।
जिसकी ऊँचाई पर, मैं ही क्या-
गर्वित भारत माता है।
जननी के इस गौरव गिरि की
आरती सजाता नील-गगन !
जिसके चरणों पर धरती-
औ' बाँहों में गंग-जमुन जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है।
पर्वत कैसे कह दूँ इसको
यह तो मेरा तीर्थस्थल है !
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण !
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ'
सुंदरता की नीति निबाही है !
पर कभी किसी से झुका नहीं
इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन
भारत के शीश हिमालय को
है मेरा बारम्बार नमन !
कवि का नाम -
रमानाथ अवस्थी
रमानाथ अवस्थी |
5 टिप्पणियां:
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Kavita ka Arth bataen
Himalaya ke Prati Ram Nath avsthi ki kavita ka Arth spasht Karen
Please iska aarth bataey
Iska aarth bataey
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