अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए - गोपालदास नीरज | Ab To Majhab Koi Aisa Bhi Chalaya Jae - Gopaladas Neeraj

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। 

जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। 

आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए। 

प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए। 

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए। 

जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए। 

गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।

कवि का नाम - 
गोपालदास नीरज
GopalDas Neeraj - Ab to majhab koi aisa bhi chalaya jae
गोपालदास नीरज

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1 टिप्पणी:

Rohitas Ghorela ने कहा…

गोपालदास नीरज जी की इस रचना को मैंने काफी बार पढ़ा है. आज फिर से पढकर मुझे बेहद ख़ुशी हुई. आपका आभार.
नई पोस्ट पुलिस के सिपाही से by पाश
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