जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी
जो स्वर्गादपि गरीयसी।
जिसका गौरव भाल हिमाचल
स्वर्ण धरा हँसती चिर श्यामल,
ज्योतिग्रथित गंगा-यमुना जल
वह जन-जन के हृदय बसी।
जिसे राम-लक्ष्मण औ’ सीता
सजा गए पद-धूलि पुनीता,
जहाँ कृष्ण ने गाई गीता
बजा अमर प्राणों में वंशी।
सावित्री राधा सी नारी
उतरीं आभा देही प्यारी,
शिला बनी तापससुकुमारी
जड़ता बनी चेतना सरसी।
शांति निकेतन जहाँ तपोवन
ध्यानावस्थित हो ऋषि-मुनिगण
चिद् नभ में करते थे विचरण,
यहाँ सत्य की किरणें बरसीं।
आज युद्ध-जर्जर जगजीवन
पुनः करेगी मंत्रोच्चारण,
वह वसुधैव बना कुटुम्बकम
उसके मुख पर ज्योति नवल सी।
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी
जो स्वर्गादपि गरीयसी।
कवि का नाम -
सुमित्रानंदन पंत
जो स्वर्गादपि गरीयसी।
जिसका गौरव भाल हिमाचल
स्वर्ण धरा हँसती चिर श्यामल,
ज्योतिग्रथित गंगा-यमुना जल
वह जन-जन के हृदय बसी।
जिसे राम-लक्ष्मण औ’ सीता
सजा गए पद-धूलि पुनीता,
जहाँ कृष्ण ने गाई गीता
बजा अमर प्राणों में वंशी।
सावित्री राधा सी नारी
उतरीं आभा देही प्यारी,
शिला बनी तापससुकुमारी
जड़ता बनी चेतना सरसी।
शांति निकेतन जहाँ तपोवन
ध्यानावस्थित हो ऋषि-मुनिगण
चिद् नभ में करते थे विचरण,
यहाँ सत्य की किरणें बरसीं।
आज युद्ध-जर्जर जगजीवन
पुनः करेगी मंत्रोच्चारण,
वह वसुधैव बना कुटुम्बकम
उसके मुख पर ज्योति नवल सी।
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी
जो स्वर्गादपि गरीयसी।
कवि का नाम -
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत |
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