नव संकल्प करो |
जन-जन की हो यह अभिलाषा
मिले राष्ट्र को अपनी भाषा।
सबका मानस चित्र बने यह,
ऐसा रंग भरो।
नव संकल्प करो।
अस्थि पुंज का मेरुदंड हो
खंड-खंड में जो अखंड हो।
सबके भावों में चिह्नित हो,
ऐसे चरण धरो।
नव संकल्प करो।
पृथक-वृत्ति की आग बुझा दे
हमें एकता-पंथ सुझा दे।
प्रीति-प्रीति के रस बंधन में-
बन सु-छंद विचारो।
नव संकल्प करो।
बंधु-भाव ही धर्म-भाव हो,
अपनो से क्या-क्यों दुराव हो ?
मानवता का चाव लिए
जग आँगन में उतरो।
नव संकल्प करो।
कवि का नाम -
अज्ञात
1 टिप्पणी:
अच्छा लगा 🙏🙏👌👌
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