पथ की पहचान - हरिवंशराय बच्चन | Path Ki Pahchan - Harivanshrai Bachchan

Path ki pahchan - harivansh rai bachchan
पथ की पहचान

पूर्व   चलने  के   बटोही
बाट की पहचान कर ले।

पुस्तको     में    है   नहीं
छापी गई उनकी कहानी,
हाल  इसका  ज्ञात होता
है न  औरों की  ज़बानी।

अनगिनत  आए-गए इस
राह से उनका  पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़  पैरों  की  निशानी।

यह निशानी  मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल  इसका  अर्थ पंथी 
पंथ का अनुमान कर ले।

पूर्व  चलने   के   बटोही 
बाट की पहचान कर ले।

यह बुरा है  या की अच्छा
व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
जब असंभव, छोड़ यह पथ 
दूसरे   पर   पग   बढ़ाना।

तू   इसे  अच्छा   समझ
यात्रा सरल इससे बनेगी,
सोच मत  केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना।

हर   सफल   पंथी   यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
तू  इसी  पर  आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।

पूर्व   चलने   के  बटोही
बाट की पहचान कर ले।

है अनिश्चित किस जगह पर
सरित,  गिरि,  गह्वर  मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर
बाग,   वन   सुंदर   मिलेंगे।

किस जगह यात्रा खतम हो
जाएगी  यह भी  अनिश्चित,
है   अनिश्चित  कब   सुमन
कब कंटकों के शर मिलेंगे।

कौन सहसा छूट जाएँगे
मिलेंगे    कौन    सहसा
आ पड़े कुछ भी रुकेगा
तू न ऐसी आ न कर ले।

पूर्व   चलने  के  बटोही
बाट की पहचान कर ले।

कवि -
हरिवंशराय बच्चन

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1 टिप्पणी:

Mahendra567 ने कहा…

Path ki Pehchan Kavita ka bhavarth

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