सच्चा भारत - रामधारी सिंह दिनकर
वृथा मत लो भारत का नाम।
मानचित्र में जो मिलता है, नही देश भारत है।
भू पर नहीं, मनों में ही बसा, कहीं शेष भारत है।
भारत एक स्वप्न, भू को ऊपर ले जाने वाला,
भारत एक विचार, स्वर्ग को भू पर लाने वाला।
भारत एक भाव, जिसको पाकर मनुष्य जगता है,
भारत एक जलज, जिसका जल का न दाग लगता है।
भारत है संज्ञा विराग की, उज्ज्वल आत्म-उदय की,
भारत है आभा मनुष्य की सबसे बड़ी विजय की।
भारत है भावना दाह जग-जीवन को हरने की,
भारत है कल्पना मनुज को राग-मुक्त करने की।
जहाँ कहीं एकता अखण्डित, जहाँ प्रेम का स्वर है;
देश-देश में खड़ा वहाँ भारत जीवित, भास्वर है।
भारत वहाँ, जहाँ जीवन साधना नहीं है भ्रम में,
धाराओं को समाधान मिला हुआ संगम में।
जहाँ त्याग माधुर्यपूर्ण हो, जहाँ भोग निष्काम,
समरस हो कामना, वहीं भारत को प्रणाम।
वृथा मत लो भारत का नाम।
कवि -
रामधारी सिंह 'दिनकर'
5 टिप्पणियां:
सच्चा भारत का भावार्थ लिखे
Wow real 'my Bharat'.
विकास बंसल की कविता "तुम मुझको कब तक रोकोगे" आजकल की पढ़ी मेरी कविताओं में काफ़ी उच्च स्थान रखती है. जीवन के संघर्षों से टक्कर लेकर उनपर विजय प्राप्त करने के के जुनून को इसमें बहुत शिद्दत से रेखांकित किया गया है. ऐसी ही और रचनाओं का इंतजार रहेगा
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