सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती - हरिवंशराय बच्चन | Sab Grah Gate, Prithvi Rotee - Harivansh Rai Bachchan

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सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।

ग्रह-ग्रह पर लहराता सागर
ग्रह-ग्रह पर धरती है उर्वर,
ग्रह-ग्रह पर बिछती हरियाली,
ग्रह-ग्रह पर तनता है अम्बर,
ग्रह-ग्रह पर बादल छाते हैं, ग्रह-ग्रह पर है वर्षा होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।


पृथ्वी पर भी नीला सागर,
पृथ्वी पर भी धरती उर्वर,
पृथ्वी पर भी शस्य उपजता,
पृथ्वी पर भी श्यामल अंबर,
किंतु यहाँ ये कारण रण के देख धरणि यह धीरज खोती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।

सूर्य निकलता, पृथ्वी हँसती,
चाँद निकलता, वह मुसकाती,
चिड़ियाँ गातीं सांझ सकारे,
यह पृथ्वी कितना सुख पाती;
अगर न इसके वक्षस्थल पर यह दूषित मानवता होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।

कवि - 
हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" 

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