चलें गाँव की ओर - रामेश्वर दयाल दुबे | Chalen Gaanv Ki Or - Rameshwar Dayal Dube

Chalen Gaanv Ki Or Kavita - Rameshwar Dayal Dube

चलें गाँव की ओर, जहाँ पर हरे खेत लहराते,
मेड़ों पर हैं कृषक घूमते, सुख से विरहा गाते।
गेहूँ चना मटर जो सिर पर लेकर भार खड़े हैं,
बीच-बीच में प्रहरी जैसे दिखते वृक्ष अड़े हैं।

चलें गाँव की ओर जहाँ, झोपड़े जहाँ झुके धरती में,
तरु के नीचे खेल रहे हैं बच्चे निज मस्ती में।
कटि पर लिए गगरिया गोरी आती है बलखाती,
देख किसी गुरुजन को सम्मुख सहसा शरमा जाती।

चलें गाँव की ओर, उठ रहा जहाँ धुआँ लहराता,
थके कृषक को साँझ समय जो घर की ओर बुलाता।
रूखा-सूखा ही भोजन है, पर वह स्नेह सना है,
इसलिए तो तोप दे रहा, अमृत तुल्य बना है।

चलें गाँव की ओर, जहाँ पर गीत गा रही हैं टोली,
ढोलक देती थाप, गमकती कजली आल्हा होली।
आए दिन त्योहार, वधू है संग बैठ मिल गाती,
"गए पिया परदेस, लिखूँ मैं रामा कैसे पाती।"

चलें गाँव की ओर, जहाँ पर गाय दुधारू चरतीं,
छाया में बैठे ग्वालों की वंशी तानें भरतीं।
जहाँ स्नेहमय निश्छल सादे जीवन का ही क्रम है,
जहाँ न कोई तुच्छ है, अध्र्य पा रहा श्रम है।

चलों गाँव की ओर, जहाँ है भारत माता रहती,
जहाँ प्रकृति के आँगन में जनजीवन धारा बहती।
चलें गाँव की ओर, जहाँ पर मानवता रहती है,
भारतीय संस्कृति की गंगा जहाँ समुद बहती है।

कवि का नाम - 
रामेश्वर दयाल दुबे
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सब कुछ यहाँ, प्रसिद्ध हिंदी कविताओं का संग्रह .

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Apdhit pathane

Unknown ने कहा…

Kavi gai me kyo jana jahta h

मनीष सिंह राजपूत ने कहा…

क्यूंकि जो सुख गाँव में है वो शहर में कभी नहीं मिल सकता

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